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आइए आज जानते हैं जगन्नाथ मंदिर के अनसुने रहस्य !
जगन्नाथ मंदिर कैसे बना ?
राजा इंद्रदमन के स्वप्न में एक दिन श्री कृष्ण जी आए और कहा कि राजन ,समुद्र किनारे एक मंदिर का निर्माण करवाओ जिसका नाम जगन्नाथ होगा और उस मंदिर में मूर्ति पूजा नहीं होगी ।
उस मंदिर में एक संत नियुक्त कर देना जो दर्शकों को गीता जी का पाठ सुनाया करेगा।
श्री कृष्ण जी की आज्ञा अनुसार राजा इंद्रदमन ने समुद्र किनारे जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 5 बार करवाया लेकिन समुद्र ने अपना प्रतिशोध लेने के लिए पांचो बार मंदिर को तोड़ दिया।
राजा इंद्रदमन ने श्री कष्ण से भी बहुत विनती की श्री कृष्ण जी मंदिर को बचाने में असफल रहे।
राजा इंद्रदमन का खजाना भी समाप्त हो चुका था तथा राजा इंद्रदमन ने मंदिर ना बनवाने का निर्णय लिया तब रानी ने अपने गहने बेचकर मंदिर बनवाने के लिए राजा से कहा लेकिन राजा हताश हो चुका था
तभी कबीर परमेश्वर राजा इंद्रदमन के पास एक संत रुप में आए और कहा मैं तुम्हारे साथ हूं।
तुम जगन्नाथ मंदिर बनवाओ लेकिन राजा ने मना कर दिया तब कबीर परमेश्वर अपना पता बता कर चले गए ।
राजा इंद्र दमन के स्वप्न में श्री कृष्ण जी आए और कहा कि वह संत सर्वशक्तिमान है वह मंदिर अवश्य बनवा देंगे आप उनसे प्रार्थना करो।
तब राजा इंद्र दमन ने कबीर परमेश्वर जी से प्रार्थना की तब
जगन्नाथ मंदिर के पास एक चबूतरा बनवाया गया था जिसे आज कबीर मठ के नाम से जाना जाता है। वहीं पर बैठकर कबीर परमात्मा ने समुद्र को जगन्नाथ मंदिर तोड़ने से बचाया था।
जब जगन्नाथ का मंदिर बन चुका था समुद्र अपना प्रतिशोध लेने के लिए आया ।
कबीर परमेश्वर जी से कहा हे भगवान्, आप हट जाओ मैं इस मंदिर को तोडूंगा तब कबीर परमेश्वर जी ने कहा आप इस मंदिर को नहीं तोड़ पाओगे समुद्र ने कहा भगवान आपके सामने मैं कुछ नहीं हूं मुझे अपना प्रतिशोध ले लेने दो तब परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि आप अपना प्रतिशोध द्वारिका को डुबोकर ले सकते हो उस समय द्वारिका नगरी खाली पड़ी हुई थी।
इस प्रकार जगन्नाथ मंदिर बच गया ।
त्रिलोकीनाथ ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पिता ज्योति निरंजन ने परमात्मा कबीर जी से कलयुग में जगन्नाथ मंदिर बनवाने का वचन लिया था।
त्रिलोकीनाथ ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पिता ज्योति निरंजन ने परमात्मा कबीर जी से कलयुग में जगन्नाथ मंदिर बनवाने का वचन लिया था।
इसलिए परमात्मा कबीर जी ने ही समुद्र को रोककर मंदिर बनवाया था।
इस प्रकार कबीर परमेश्वर जी की कृपा से जगन्नाथ मंदिर का निर्माण हुआ
अब बात आती है कि समुद्र जगन्नाथ मंदिर को बार-बार क्यों तोड़ता था।
जब श्री विष्णु जी त्रेता युग में श्री रामचंद्र जी रूप में आए थे तो उनकी पत्नी सीता को रावण ने चुरा लिया था उस समय युद्ध की तैयारी बनी थी तब श्री रामचंद्र जी ने समुद्र को अग्निबाण निकाल कर धमकाया था रास्ता देने के लिए !
वही प्रतिशोध समुद्र जगन्नाथ मंदिर को तोड़कर ले रहा था।
वही प्रतिशोध समुद्र जगन्नाथ मंदिर को तोड़कर ले रहा था।
जगन्नाथ मंदिर में मूर्ति की स्थापना किस प्रकार हुई?
मंदिर बनने के दौरान वहां पर सिद्ध पुरुष नाथ जी आए उन्होंने कहा मंदिर बिना मूर्ति के कैसे
इस मंदिर में मूर्ति भी रखी जाए तब राजा इंद्र दमन ने तीन बार मूर्तियां बनवाई और तीन बार मूर्तियां अपने आप टूट गई तब कबीर परमेश्वर जी ने उन मूर्तियों का निर्माण किया।
कबीर परमेश्वर जी जब मूर्ति का निर्माण कर रहे थे तब उन्होंने कहा था कि मैं एक कमरे के अंदर मूर्ति का निर्माण करूंग
जब मूर्ति बन जाएगी मैं कमरे से अपने आप बाहर आ जाऊंगा।
चार दिन हो चुके थे तभी नाथ जी आए और कमरे का गेट खुलवाया तब मूर्ति के हाथ और पैर के पंजे रह गए थे और कबीर परमेश्वर जी वहां पर नहीं थे तो मूर्तियां ऐसे ही वहां पर स्थापित कर दी गई ।
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चार दिन हो चुके थे तभी नाथ जी आए और कमरे का गेट खुलवाया तब मूर्ति के हाथ और पैर के पंजे रह गए थे और कबीर परमेश्वर जी वहां पर नहीं थे तो मूर्तियां ऐसे ही वहां पर स्थापित कर दी गई ।
इसलिए जगन्नाथ मंदिर के मूर्तियों के हाथ -पैर के पंजे नहीं है।
जगन्नाथ मंदिर रहस्य
जगन्नाथ मंदिर में मूर्तिपूजा नहीं होती है, मूर्तियां केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं।
हिंदुस्तान का जगन्नाथ मंदिर ही एक ऐसा मंदिर है जिसमें किसी भी प्रकार की छुआछात नहीं होती है।
⭐ जगन्नाथ मंदिर के पुजारी रामसहाय खिचड़ी प्रसाद बना रहा था उसके पैरों के ऊपर गर्म खिचड़ी गिर गई तब कबीर परमेश्वर जी ने उसके जीवन की रक्षा की है अन्यथा वह मर जाता।
🏕️ जगन्नाथ की पूजा करना शास्त्र विरुद्ध साधना है
जगन्नाथ के दर्शन मात्र या खिचड़ी प्रसाद खाने मात्र से कोई लाभ नहीं है क्योंकि यह क्रिया गीता जी में वर्णित न होने से शास्त्र विरुद्ध है जिसका प्रमाण गीता अध्याय 16 मंत्र 23, 24 में है। गीता जी में बताई गई साधना से ही मोक्ष संभव है।
🏕️ पवित्र सतग्रंथों के अनुसार असली जगन्नाथ भगवान कबीर जी ही हैं जिनकी भक्ति करने से हमें पूर्ण मोक्ष मिलेगा।
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