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आइए आज जानते हैं गुरु बिन मोक्ष नहीं हो सकता।
दोस्तो आज इस ब्लॉग के माध्यम से जानेंगे कि गुरु बिना मोक्ष नहीं होता लेकिन गुरु बिना भक्ति तो कर सकते हैं पर वह भक्ति व्यर्थ है।
क्योंकी हरि को गुरु विहीन नहीं भाता।
:- परमात्मा का विधान है जो सूक्ष्मवेद में कहा है :-
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान।
गुरू बिन दोंनो निष्फल है, पूछो वेद पुराण।।
कबीर, राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हों भी गुरू कीन्ह।
तीन लोक के वे धनी, गुरू आगे आधीन।।
कबीर, राम कृष्ण बड़े तिन्हूं पुर राजा। तिन गुरू बन्द कीन्ह निज काजा।।
भावार्थ :- गुरू धारण किए बिना यदि नाम जाप की माला फिराते हैं और दान देते हैं, वे दोनों व्यर्थ हैं। यदि आप जी को संदेह हो तो अपने वेदों तथा पुराणों में प्रमाण देखें।
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श्रीमद् भगवत गीता चारों वेदों का सारांश है।
गीता अध्याय 2 श्लोक 7 में
अर्जुन ने कहा कि हे श्री कृष्ण! मैं आपका शिष्य हूँ, आपकी शरण में हूँ। गीता अध्याय 4 श्लोक 3 में श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके काल ब्रह्म ने अर्जुन से कहा कि तू मेरा भक्त है।
पुराणों में प्रमाण है कि श्री रामचन्द्र जी ने ऋषि वशिष्ठ जी
से नाम दीक्षा ली थी और अपने घर व राज-काज में गुरू वशिष्ठ जी की आज्ञा लेकर कार्य करते थे।
श्री कृष्ण जी ने ऋषि संदीपनि जी से अक्षर ज्ञान प्राप्त किया
तथा श्री कृष्ण जी के आध्यात्मिक गुरू श्री दुर्वासा ऋषि जी थे।
कबीर परमेश्वर जी हमें समझाना चाहते हैं कि आप जी श्री राम तथा श्री कृष्ण जी से तो किसी को बड़ा अर्थात् समर्थ नहीं मानते हो। वे तीन लोक के मालिक थे, उन्होंने भी गुरू बनाकर अपनी भक्ति की, मानव जीवन सार्थक किया।
इससे सहज में ज्ञान हो जाना चाहिए कि अन्य व्यक्ति यदि गुरू के बिना भक्ति
करता है तो कितना सही है? अर्थात् व्यर्थ है।
गुरू के बिना देखा-देखी कही-सुनी भक्ति को लोकवेद के अनुसार भक्ति कहते हैं।
लोकवेद का अर्थ है, किसी क्षेत्र में प्रचलित भक्ति का ज्ञान जो
तत्वज्ञान के विपरीत होता है। लोकवेद के आधार से यह दास (संत रामपाल दास) श्री हनुमान जी, बाबा श्याम जी, श्री राम, श्री कृष्ण, श्री शिव जी तथा देवी-देवताओं की भक्ति करता था। हनुमान जी की भक्ति में मंगलवार का व्रत,बुन्दी का प्रसाद बाँटना, स्वयं देशी घी का गिच चुरमा खाता था, बाबा हनुमान को
डालडा वनस्पति घी से बनी बुन्दी का भोग लगाता था।
हरे राम, हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे का मन्त्र जाप करता था।
किसी ने बता दिया कि :-
ओम् नाम सबसे बड़ा, इससे बड़ा न कोय।
ऊँ नाम का जाप करे, तो शुद्ध आत्मा होय।।
इस कारण से ओम् नाम का जाप शुरू कर दिया।
ओम् नमो शिवायः, यह शिव का मन्त्र जाप करता था।
ओम् भगवते वासुदेवायः नमः, यह विष्णु जी का जाप करता था। तीर्थों पर जाना, दान करना, वहाँ स्नान करना, यह भी लोकवेद के आधार से करने जाता था।
जैसे घर में सुख होते थे तो मैं मानता था कि ये सब मेरी उपरोक्त भक्ति
के कारण हो रहे हैं। जैसे कक्षा में पास होना, विवाह होना, पुत्र तथा पुत्रियों का जन्म होना, नौकनी लगना।
ये सर्व सुख उपरोक्त साधना से ही मानता था।
कबीर परमेश्वर जी ने सूक्ष्म वेद में कहा है :-
कबीर, पीछे लाग्या जाऊं था, मैं लोक वेद के साथ।
रास्ते में सतगुरू मिले, दीपक दीन्हा हाथ।।
भावार्थ है कि साधक लोकवेद अर्थात् दन्त कथा के आधार से भक्ति कर रहा था। उस शास्त्राविरूद्ध साधना के मार्ग पर चल रहा था। रास्ते में अर्थात् भक्ति मार्ग में एक दिन तत्वदर्शी सन्त मिल गए।
उन्होंने शास्त्राविधि अनुसार शास्त्र प्रमाणित
साधना रूपी दीपक दे दिया अर्थात् सत्य शास्त्रानुकूल साधना का ज्ञान कराया तो जीवन नष्ट होने से बच गया।
सतगुरू द्वारा बताये तत्वज्ञान की रोशनी में पता
चला कि मैं गलत भक्ति कर रहा था।
श्री मद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23.
24 में कहा है कि शास्त्र विधि को त्यागकर जो साधक मनमाना आचरण करते हैं,
उनको न तो सुख होता है, न सिद्धि प्राप्त होती है और न ही गति अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति होती है अर्थात् व्यर्थ साधना है। फिर गीता अध्याय 16 श्लोक 24 में कहा
है कि अर्जुन! इससे तेरे लिए कृर्तव्य और अकृर्तव्य की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण हैं।
जो उपरोक्त साधना यह दास (संत रामपाल दास) किया करता था तथा पूरा हिन्दू समाज कर रहा है, वह सब गीता-वेदों में वर्णित न होने से शास्त्र विरूद्ध साधना हुई जो व्यर्थ है।
कबीर, गुरू बिन काहु न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुस छडे़ मूढ़ किसाना।
कबीर, गुरू बिन वेद पढै़ जो प्राणी, समझै न सार रहे अज्ञानी।।
इसलिए गुरू जी से वेद शास्त्रों का ज्ञान पढ़ना चाहिए जिससे सत्य भक्ति की शास्त्रानुकूल साधना करके मानव जीवन धन्य हो जाए।
’’पूर्ण गुरू के वचन की शक्ति से भक्ति होती है‘‘
गुरू जी से दीक्षा लेकर भक्ति करना लाभदायक है।
बिना गुरु के भक्ति करना लाभदायक नहीं है।
वर्तमान में, संत रामपाल जी महाराज एकमात्र संत हैं।
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