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कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं।

हमारे blog पर आपका स्वागत है।

आज हम आपको अपने ब्लॉग के माध्यम से बताएंगे कि कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं।

सभी सद ग्रंथ तथा अनेक महापुरुषों की वाणियां सिद्ध करती हैं कि कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं।

पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पूर्व सतलोक में विद्यमान थे तथा अपना वास्तविक ज्ञान (तत्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में भी स्वयं प्रकट हुए हैं। 


     सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान।
      झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।।

कबीर परमेश्वर चारों युगों में इन नामों से प्रकट हुए हैं।
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सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिन्द्र नाम से, द्वापर युग में करूणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से प्रकट हुए हैं।

        सतयुग में कबीर परमेश्वर का प्राकाट्य

✳️सतयुग में कविर्देव (कबीर साहेब) का सत्सुकृत नाम से प्राकाट्य“
पूर्ण प्रभु कबीर जी (कविर्देव) सतयुग में सतसुकृत नाम से स्वयं प्रकट हुए थे। 
उस समय गरुड़ जी, श्री ब्रह्मा जी श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी आदि को सतज्ञान समझाया था।

✳️सतयुग में परमेश्वर कविर्देव जी जो सतसुकृत नाम से आए थे उस समय के ऋषियों व साधकों को वास्तविक ज्ञान समझाया करते थे। परन्तु ऋषियों ने स्वीकार नहीं किया। सतसुकृत जी के स्थान पर परमेश्वर को ‘‘वामदेव‘‘ कहने लगे।

✳️सतयुग में सतसुकृत नाम से कबीर परमेश्वर स्वयं प्रकट हुए थे।
श्री मनु जी को भी तत्वज्ञान समझाना चाहा था।
उन्होंने सत को नहीं माना व श्री ब्रह्मा जी के द्वारा निकाले वेदों के निष्कर्ष पर ही आरुढ रहे इसके विपरीत परमेश्वर सतसुकृत
जी का उपहास करने लगे और उनका उर्फ नाम वामदेव निकाल दिया

            त्रेता युग में कबीर साहेब जी का प्राकाट्य


✳️त्रेता युग में कबीर परमेश्वर मुनींद्र ऋषि के नाम से आए तथा शिशु रूप धारण करके कमल के फूल पर प्रकट हुए।
त्रेता युग में उनकी परवरिश की लीला निसंतान दंपत्ति वेदविज्ञ  नामक ऋषि तथा सूर्या नामक उनकी साध्वी पत्नी ने की।
  
कबीर परमात्मा हर युग में आते हैं
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे कवि कहने लग जाते हैं, वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् (कबीर प्रभु) ही है।

 ✳️ परमेश्वर कबीर जी त्रेतायुग में ऋषि मुनीन्द्र जी के रूप में लीला करने आए तब हनुमान जी से मिले। तथा सतलोक के बारे में बताया हनुमानजी को विश्वास हुआ कि ये परमेश्वर हैं। सत्यलोक सुख का स्थान है। परमेश्वर मुनीन्द्र जी से दीक्षा ली। अपना जीवन धन्य किया। मुक्ति के अधिकारी हुए।

✳️त्रेता युग में परमात्मा कबीर मुनींद्र नाम से आए थे उस समय एक लीलामय तरीके से बंके नाम की एक प्यारी आत्मा को अपनी शरण में लिया,सत्य ज्ञान समझाया ओर पार किया।

✳️त्रेता युग में कबीर परमेश्वर जी नल व नील को शरण में लिया ।
अपने आशीर्वाद मात्र से उनके मानसिक और शारीरिक रोग को दूर किया।
उनकी कृपा से समुद्र पर पत्थर तैरे थे।

✳️त्रेता युग में ही कबीर परमेश्वर मुनींद्र रूप में
लंका के राजा रावण की रानी मंदोदरी व रावण के भाई विभीषण को तत्वज्ञान समझाया और उनको उपदेश देकर उनका कल्याण करवाया।


       द्वापर युग में कबीर परमेश्वर का प्राकाट्य

✳️द्वापर युग में परमात्मा कबीर जी करुणामय  नाम से आए थे और पंथ प्रचार के लिए चतुर्भुज नाम की एक प्यारी आत्मा को चुना
लाखों जीवो तक ज्ञान पहुंचाया और इस प्यारी आत्मा को पार किया।

✳️द्वापर युग में कबीर परमेश्वर की दया से पांडवों का अश्वमेध यज्ञ संपन्न हुआ।
पांडवों की अश्वमेघ यज्ञ में अनेक ऋषि, महर्षि, मंडलेश्वर  उपस्थित थे यहां तक कि भगवान कृष्ण भी उपस्थित थे फिर भी उनका शंख नहीं बजा।
कबीर परमेश्वर ने सुदर्शन सुपच जी के रूप में शंख बजाया और पांडवों का यज्ञ संपन्न किया।
गरीबदास जी महाराज की वाणी में इसका प्रमाण है।

"गरीब सुपच रुप धरि आईया, सतगुरु पुरुष कबीर।
तीन लोक की मेदनी, सुर नर मुनि जन भीर।।

तेतिस कोटि यज्ञ में आए , सहंस अठासी सारे, द्वादश कोटि वेद के वक्ता ,सुपच का शंक बज्या रे।।


        कलयुग में कबीर साहेब का प्राकाट्य


कलयुग में कबीर परमेश्वर अपने वास्तविक नाम कबीर रूप में काशी नगरी में लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर अवतरित हुए।
कलयुग में निसंतान दंपति नीरू और नीमा ने उनका पालन पोषण किया।
उनकी परवरिश कुंवारी गाय के दूध से हुई।


ऋ्ग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है उस समय कंवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।


ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17
शिशुम् जज्ञानम् हर्य तम् मृजन्ति शुम्भन्ति वह्निमरूतः गणेन।
कविर्गीर्भि काव्येना कविर् सन्त् सोमः पवित्रम् अत्येति रेभन्।।
विलक्षण मनुष्य के बच्चे के रूप में प्रकट होकर पूर्ण परमात्मा कविर्देव अपने वास्तविक ज्ञानको अपनी कविर्गिभिः अर्थात् कबीर बाणी द्वारा पुण्यात्मा अनुयाइयों को कवि रूप में कविताओं, लोकोक्तियों के द्वारा वर्णन करता है। वह स्वयं सतपुरुष कबीर ही होता है।




✳️कबीर परमात्मा चारों युगों में आते हैं
यजुर्वेद के अध्याय नं. 29 के श्लोक नं. 25 (संत रामपाल जी महाराज द्वारा भाषा-भाष्य):-
जिस समय पूर्ण परमात्मा प्रकट होता है उस समय सर्व ऋषि व सन्त जन शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् पूजा कर रहे होते हैं। तब अपने तत्वज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं ही कबीर प्रभु ही आता है।

✳️कबीर परमात्मा अन्य रूप धारण करके कभी भी प्रकट होकर अपनी लीला करके अन्तर्ध्यान हो जाते हैं। उस समय लीला करने आए परमेश्वर को प्रभु चाहने वाले श्रद्धालु नहीं पहचान पाते, क्योंकि सर्व महर्षियों व संत कहलाने वालों ने प्रभु को निराकार बताया है। वास्तव में परमात्मा आकार में है। मनुष्य सदृश शरीर युक्त है। 

✳️परमेश्वर का शरीर नाड़ियों के योग से बना पांच तत्व का नहीं है। एक नूर तत्व से बना है। पूर्ण परमात्मा जब चाहे यहाँ प्रकट हो जाते हैं वे कभी मां से जन्म नहीं लेते क्योंकि वे सर्व के उत्पत्ति करता हैं।

 ✳️कबीर साहिब जी चारों युगों में नामांतर करके शिशु रूप में प्रकट होते हैं और एक-एक शिष्य बनाते हैं जिससे कबीर पंथ का प्रचार होता है।
सतयुग - सहते जी
त्रेता - बंके जी
द्वापर - चतुर्भुज जी
कलियुग - धर्मदास जी


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