"काल" कौन है ?
"काल" केवल इक्कीस ब्रह्माण्ड का स्वामी(प्रभु) है ।
इसे क्षर पुरूष, ज्योति निरंजन, काल , ब्रह्म तथा धर्मराय आदि नामों से जाना जाता है
यह तथा इसके सर्व ब्रह्माण्ड नाशवान हैं।
काल की परिभाषा - पवित्र विष्णु पुराण ( प्रथम अंश) अध्याय 2 श्लोक 15 में वर्णन है कि भगवान विष्णु (महा विष्णु रूप में काल )का प्रथम रूप तो पुरूष (प्रभु जैसा )है परन्तु उसका परम रूप "काल" है । जब भगवान विष्णु (काल जो महाविष्णु रूप में ब्रह्मलोक में रहता है तथा प्रकृति अर्थात दुर्गा को अपनी पत्नी महालक्ष्मी रूप में रखता है)
अपनी प्रकृति( दुर्गा) से अलग हो जाता है तो काल रूप में प्रकट हो जाता है (यह प्रकरण विष्णु पुराण प्रथम अंश अध्याय2 प्रष्ठ 4-5 गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित हैं अनुवादक हैं श्री मुनि लाल गुप्त)
विशेष - उपरोक्त विवरण का भावार्थ है कि यह महाविष्णु अर्थात काल पुरुष प्रथम दृष्टा रूप तो लगता है कि यह दयावान भगवान हैं जैसे खाने के लिए अन्न
,मेवा व फल आदि कितने स्वादिष्ट प्रदान किये हैं तथा पीने के लिए दूध, जल कितने स्वादिष्ट तथा प्राणदायक प्रदान किये हैं। कितनी अच्छी वायु जीने के लिए चला रखी है , कितनी विस्तृत पृथ्वी रहने तथा घूमने के लिए प्रदान की है ,फिर पति पत्नी का योग ,पुत्रों व पुत्रियों की प्राप्ति से लगता है कि यह तो बड़ा दयावान प्रभु है ।जिसके लोक मे हम रह रहे हैं ।
महाविष्णु का वास्तविक रूप काल कैसे हैं:-
किसी के पुत्र की मृत्यु , किसी के पुत्री की मृत्यु , किसी के दोनों पुत्रों की मृत्यु, किसी का पूरा परिवार दुर्घटना मे मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।इस प्रकार इस विष्णु (महाविष्णु रूप मे ज्योति निरंजन) का वास्तविक रूप काल है।
क्योंकि ज्योति निरंजन(काल ब्रह्म) शाप वश एक लाख मानव शरीरधारी प्राणियों का आहार करता है।इसलिए इसने अपने तीनो पुत्रों ( रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तथा तमगुण शिव जी) से उत्पत्ति, स्थिति व संहार करवाता है।
काल के उत्पत्ति कैसे हुई देखें
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कविर्देव (कबीर प्रभु) ने सतपुरुष रूप में प्रकट होकर सतलोक में विराजमान होकर प्रथम सतलोक में अन्य रचना की।एक शब्द (वचन) से सोलह द्वीपों की रचना की। फिर सोलह शब्दों से सोलह पुत्रों की उत्पत्ति की।
एक मानसरोवर की रचना की जिसमें अमृत भरा।
सोलह पुत्रोंके नाम हैं :-(1) ‘‘कूर्म’’, (2)‘‘ज्ञानी’’, (3) ‘‘विवेक’’, (4) ‘‘तेज’’, (5) ‘‘सहज’’,(6) ‘‘सन्तोष’’, (7)‘‘सुरति’’, (8) ‘‘आनन्द’’, (9) ‘‘क्षमा’’, (10) ‘‘निष्काम’’,(11) ‘जलरंगी‘ (12)‘‘अचिन्त’’, (13) ‘‘प्रेम’’, (14) ‘‘दयाल’’, (15) ‘‘धैर्य’’ (16)‘‘योग संतायन’’ अर्थात् ‘‘योगजीत‘‘।
सतपुरुष कविर्देव ने अपने पुत्र अचिन्त को सत्यलोक की अन्य रचना का भार सौंपा तथा शक्ति प्रदान की।
अचिन्त ने अक्षर पुरुष (परब्रह्म) की शब्द से उत्पत्ति की तथा कहा कि मेरी मदद करना।
अक्षर पुरुष स्नान करने मानसरोवर पर गया,वहाँ आनन्द आया तथा सो गया। लम्बे समय तक बाहर नहीं आया। तब अचिन्त की प्रार्थना पर अक्षर पुरुष को नींद से जगाने के लिए कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने उसी मानसरोवर से कुछ अमृत जल लेकर एक अण्डा बनाया तथा उस अण्डेमें एक आत्मा प्रवेश की तथा अण्डे को मानसरोवर के अमृत जल में छोड़ा। अण्डे की गड़गड़ाहट से अक्षर पुरुष की निंद्रा भंग हुई। उसने अण्डे को क्रोध से देखा ।
जिस कारण से अण्डे के दो भाग हो गए। उसमें से ज्योति निंरजन (क्षर पुरुष)निकला जो आगे चलकर ‘काल‘ कहलाया। इसका वास्तविक नाम ‘‘कैल‘‘ है। तब सतपुरुष (कविर्देव) ने आकाशवाणी की कि आप दोनों बाहर आओ तथा अचिंत केद्वीप में रहो। आज्ञा पाकर अक्षर पुरुष तथा क्षर पुरुष (कैल) दोनों अचिंत के द्वीपमें रहने लगे
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इस प्रकार काल की उत्पत्ति हुई ।
यह काल वही काल है जो एक लाख मानव प्राणी प्रतिदिन खाता है और सवा लाख की उत्पत्ति करता है वैसे ये काल इतना निर्दयी है कि ये कभी किसी को मानव जीवन ही न देता । लेकिन इसको श्राप लगा है एक लाख मानव प्राणी खाने के लिए इसलिए ये मानव जीवन देता है।
काल निरंजन तथा काल ,ब्रह्म ही माता दुर्गा का पति है तथा ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों देव का पिता है ।
इसी काल ने गीता का ज्ञान बोला प्रमाण के लिए देखें
श्री मद्भागवत गीता अध्याय 11 के स्लोक नंबर 32 में गीता ज्ञान दाता अर्जुन से कहता है कि मैं काल हूँ मैं सभी को खाने के लिए आया हूँ तथा मैं सभी का नाश करूँगा ।
ये वही काल है जिसके लोकमें हम रहते हैं ये काल किसी को भी सत्य से परिचित नहीं होने देता है
अधिक जानकारी के लिए देखें
7 Comments
Jay ho purn parmatama ki
ReplyDeleteएकदम सत्य ग्यान जो सभी धर्म शास्र में प्रमाणित है
ReplyDeleteबहुत ही जबरदस्त जानकारी दी गीता जी के बारे में।
ReplyDeleteअनमोल ज्ञान
ReplyDeleteमूर्ख शिरोमणि
ReplyDeleteFool
ReplyDeleteManghadant
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